

जिया न्यूज़:-ग्राउंड जीरो से दिनेश गुप्ता की रिपोर्ट,
दंतेवाड़ा जिले के अतिसंवेदनशील व सुदूरवर्ती गांव मारजुम में आजादी के बाद पहली बार शनिवार को स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में तिरंगा लहराया। मारजुम एक ऐसा इलाका है जो घूर माओवाद प्रभावित क्षेत्र है। और वहां पहुचना भी बहुत मुश्किल हैं।भारी बारिस के बीच दुर्गम रास्तों को पार कर पुलिस यहां पहुंची। और ग्रामीणों की मौजूदगी में ध्वजारोहण किया। गौरतलब है कि यह इलाका पूरी तरह से नक्सलियों के कब्जे में था और राष्ट्रीय पर्वों पर नक्सली यहाँ काला झंडा फहराते थे। लेकिन इस बार नजारा बिल्कुल बदला सा नजर आया। इस बार गांव में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच ध्वजारोहण हुआ। और तिरंगे झंडे को सलामी दी गई यह दृश्य गांव वालों के लिए अविस्मरणीय रहा। इस दौरान सुरक्षा के लिये ड्रोन कैमरे से भी चप्पे चप्पे नगर रखी जा रही थी।बारिश के बीच सुबह से ही ग्रामीण आजादी के जश्न में शामिल होने के लिए एकत्र हो गए थे इनमें बच्चों और महिलाओं की संख्या भी काफी ज्यादा थी। हालांकि ग्रामीणों को ध्वजारोहण के लिए दोपहर तक का इंतजार करना पड़ा। दरअसल खराब रास्ते और नक्सली हमले की आशंका के मद्देनजर पुलिस की टीम को यहां पहुंचने में देरी हुई। इस दौरान बारिश के बावजूद ग्रामीण तिरंगे के सामने छाता थामें डटे रहे। कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच पुलिस अफसर व जवान मारजुम पहुंचे और हर्षोल्लास के वातावरण में तिरंगा फहराया गया। नक्सली वारदात की आशंका के चलते रास्ते भर में जवानों की तैनाती पहले से ही कर दी गई थी। गौरतलब है कि मारजुम जैसे नक्सलियों के वर्चस्व वाले सुदूरवर्ती गांव में 15 अगस्त व 26 जनवरी के मौके पर नक्सली काला झंडा फहरा कर विरोध करते थे। लेकिन बीते कुछ समय से तस्वीर बदल रही है अब नक्सलियों के गढ़ व उनके इलाकों में काले झंडे की जगह तिरंगा झंडा लहरा रहा है। और इन जगहों में देशभक्ति के नारे भी बुलंद हो रहे हैं। इसकी एक बड़ी वजह है अंदरूनी क्षेत्रों में पुलिस व सुरक्षा बलों की बढ़ती दखल। कटेकल्याण इलाके के चिकपाल में सीआरपीएफ कैंप की स्थापना के बाद से ही इस क्षेत्र में नक्सलियों की धमक कम हो गई है। इसका नतीजा है कि ग्रामीणों और पुलिस के बीच दूरियां भी अब कम होने लगी है। दूसरी ओर दंतेवाड़ा पुलिस का लोन वर्राटू अभियान अर्थात घर वापस आइए भी सफलता के झंडे गाड़ रहा है। नक्सल उन्मूलन अभियान की दिशा में इस अभियान ने उल्लेखनीय भूमिका निभाई है। इसके तहत अभी तक 20 ईनामी माओवादियों सहित लगभग 83 माओवादियों ने अभी तक हिंसा का रास्ता छोड़कर समाज की मुख्यधारा में शामिल हो चुके हैं। जिन हाथों में हथियार होता था अब उन हाथों में हल दिखाई दे रहा है। यह बदलते दक्षिण बस्तर दंतेवाड़ा की तस्वीर नजर आ रही है।ग्राउंड जीरो पर मौजूद मीडिया की टीम ने जब ग्रामीणों से बात की तो ग्रामीणो ने शासन प्रशासन से सड़क, बिजली ,पानी, स्कूल व अस्पताल की मांग की। ग्रामीणों का कहना है कि हम भी विकास की मुख्य धारा से जुड़ना चाहते है।
