
सुभाष यादव:-दंतेवाड़ा,
दंतेवाड़ा – अथक प्रयासोपरांत भारत के नागरिकों को सूचना का अधिकार प्राप्त हुआ है। लेकिन अफसरशाह इस अधिनियम को अपनी स्वतंत्रता में बाधक मानते हुए। अपने आपको इस अधिनियम की परिधि से बाहर रहने का समय-समय पर असफल प्रयास करते रहे है। और आज भी अपनी इस मुहिम में लगे हुये है। साथ ही इस अधिनियम में संशोधन की कुचेष्टा कर रहे है।
ऐसा ही एक मंजर वनमण्डलाधिकारी कार्यालय दंतेवाड़ा में देखने को मिला। नगर के आरटीआई कार्यकर्ता ने 31 मई 2019 को विभाग में आवेदन प्रस्तुत किया। उसके उपरांत विभाग द्वारा 25 जुलाई 2019 को गणना पत्र आवेदन को भेजा उसमे 40 पृष्ठ की जानकारी के लिये 80 रुपये जमा करने को कहा।
गौरतलब बात ध्यान देने योग्य है, नियमतः जानकारी 30 दिनों में देनी होती है। परन्तु जनसूचना अधिकारी ने ऐसा नही किया। एक माह बीत जाने के 25 दिन के उपरांत जानकारी दी।
आपको बताना लाजमी होगा कि जनसूचना अधिकारी ने जो जानकारी दी वो गलत जानकारी थी। आवेदन ने विभाग के स्टेनो जो सूचना का अधिकार शाखा देखती है। उनसे कहा जानकारी गलत दी गई है। तो उन्होंने कहा हमारे पास यही जानकारी है। आप चाहे तो प्रथम अपीलीय अधिकारी के समक्ष आवेदन कर सकते है।
गंगाजल जैसा पवित्र शीतल कानून भी इन सरकारी कर्मचारियों, अधिकारियों को सूर्य के किरणों के समान तपिस दे रहा है, ऐसा प्रतीत होता है। पता नही यह देखा गया है कि वन विभाग जानकारी देने में आनाकानी करता है।
इस सम्बंध में आवेदक से बात की गई तो उन्होंने बताया कि परिक्षेत्र बचेली में वर्ष 2017-18 में एनएमडीसी मद से निर्मित चेक डेम की संख्या 5 बिंदु में मांगी थी। 1 चेक डेम का प्राक्कलन 2 टेस्टिंग रिपोर्ट 3 कार्य एजेंसी का नाम 4 देयक भुगतान फोटोग्राफ 5 मेजरमेंट की कापी। विभाग द्वारा गलत जानकारी दी गई। आवेदक ने प्रथम अपीलीय अधिकारी के पास भी आवेदन किया वहाँ भी इनके हाथ निराशा ही आई अब राज्य सूचना आयोग में आवेदन कर दिया गया है।