
जिया न्यूज़:-रायपुर,
रायपुर:-समाजसेवी और राजनीतिक विश्लेषक प्रकाशपुन्ज पाण्डेय ने मीडिया के माध्यम से बताया कि आज शनिवार २९ अगस्त २०२० को दोपहर २ बजे एक वर्चुअल चर्चा का आयोजन किया गया, जिसमें भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री डॉ चंद्रशेखर साहू, रायगढ़ से पत्रकार विनय पाण्डेय, गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता निश्चय वाजपेयी, ज्योतिष रत्न व समाजशास्त्री पं. प्रियशरण त्रिपाठी, अकोला, महाराष्ट्र से डॉ अहमद उरूज़ और समाजसेवी व राजनीतिक विश्लेषक प्रकाशपुन्ज पाण्डेय ने अपने अपने विचार व्यक्त किए। “मिशन स्वराज” की इस कड़ी में, “चर्चा आवश्यक है” के अंतर्गत आज की इस वर्चुअल चर्चा का विषय था, ‘महात्मा गाँधी का व्यसन मुक्त भारत का सपना’ ।
प्रकाशपुन्ज पाण्डेय ने बताया कि मिशन स्वराज की शुरूआत ९ अगस्त २०२० को देश में बौद्धिक चर्चाओं के लिए किया गया है। इसका उद्देश्य है कि देश में हमारे महापुरुषों और हमारी विभूतियों के आदर्शों और सिद्धांतों को जीवंत किया जाए। देश में बौद्धिक चर्चाओं का जो अकाल सा पड़ा हुआ है उसे देखते हुए इस मिशन की शुरुआत की गई है, जिसमें देश के प्रत्येक राज्यों से अलग अलग वर्गों, भाषाओं, क्षेत्रों और अलग अलग आयु के लोगों को अलग अलग विषयों पर अपने विचार व्यक्त करने के लिए आमंत्रित किया जाता है। आज की चर्चा में सभी वक्ताओं ने खुलेपन से अपने विचार रखे।
डॉ चंद्रशेखर साहू ने दलगत राजनीति से ऊपर उठकर कहा कि नशा केवल शराब का ही नहीं होता, नशा सत्ता कभी होता है, नशा पैसे का भी होता है और नशा घमंड का भी होता है। इसलिए प्रत्येक भारतवासी को हर प्रकार की नशे से गुजरे करना चाहिए। उन्होंने कहा कि आज़ादी के बाद से चाहें किसी के भी सरकारें हों, एक बात सत्य है कि महात्मा गाँधी के व्यसन मुक्त भारत के सपने को साकार करने में असमर्थ रही हैं। इसका कारण सिर्फ इच्छाशक्ति की कमी ही नहीं बल्कि प्रत्येक भारतवासी का नशा के प्रति अपना नज़रिया भी है। प्रत्येक व्यक्ति को इस मुहिम की शुरुआत करनी होगी कि वह स्वयं संकल्प लें कि वह किसी भी प्रकार के व्यसन से सदा के लिए दूर रहेगा और दूसरों को भी प्रेरित करे। तभी यह सपना साकार पाएगा। उन्होंने प्रकाशपुंज पांडेय को सुझाव भी दिया कि क्यों ना यह शुरुआत यहीं से की जाए।
पंडित प्रिय शरण त्रिपाठी ने कहा कि शराब का कारण केवल सरकारी इच्छाशक्ति ही नहीं, यह आपकी अंतरात्मा पर भी निर्भर करता है। उन्होंने कहा कि अगर हमें शराब और सभी प्रकार के नशों का समूल खात्मा करना है तो इसके लिए सरकारों को वचनबद्ध होना होगा और एक सुनियोजित तरीके से कार्य को करना होगा। साथ ही महात्मा गाँधी के आदर्शों को शत-प्रतिशत अपनी कार्यशैली में समाहित करना होगा। तभी हम एक स्वर्णिम और व्यसन मुक्त भारत का सपना साकार कर पाएंगे। उन्होंने सभी का हौसला बढ़ाते हुए अपना आशीर्वाद दिया और साधुवाद देते हुए कहा कि चाहे कुछ भी हो जाए, इस प्रकार की चर्चाएँ और संवाद सदैव जीवंत रहना चाहिए।
डॉ अहमद उरूज़ ने कहा कि शराब और किसी भी प्रकार का नशा इंसानी शरीर का समूल नाश करता है और उसके बाद तमाम प्रकार की बीमारियों को न्योता देता है, जैसे हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, कैंसर, लीवर डैमेज आदि। उन्होंने एक लाइन में हर इंसान को इस बुरी बला से दूर रहने की हिदायत दी। उन्होंने कहा कि चाहे कोई भी धर्म हो, शराब को पाक साफ नहीं मना गया है और उसे हमेशा एक बुरी बला की रूप में ही देखा जाता है। भले ही शराब का उपयोग इलाज और दवाइयों को बनाने में होता है लेकिन इसे वहीं तक सीमित रखना चाहिए।
पत्रकार विनय पांडेय ने कहा कि हाल ही में छत्तीसगढ़ विधानसभा में हुई चर्चा में आबकारी मंत्री ने कहा कि शराब से लगभग 7000 करोड़ की आय हुई है। लेकिन उन्होंने एक प्रश्न उठाते हुए कहा कि लगभग एक लाख करोड़ के बजट वाले छत्तीसगढ़ राज्य में क्या केवल लगभग 7 प्रतिशत के रेवेन्यू जनरेशन के ख़ातिर लोगों की जान से खिलवाड़ किया जा सकता है? उन्होंने कहा कि यद्यपि भारत में कुछ जातियों और जनजातियों में शराब के सेवन की धार्मिक मान्यताओं के आधार पर स्वीकार्यता है लेकिन शराब किसी भी प्रकार से उचित नहीं है। हां सांस्कृतिक आधार पर इसकी मान्यता है लेकिन फिर भी उचित नहीं है।
निश्चय वाजपेयी ने कहा कि देश महात्मा गांधी की पुंयतिथि जरूर मनाता है लेकिन अगर उनके आदर्शों पर देश चले तो देश में खुशहाली आना तय है। उन्होंने कहा कि कई सरकारें आईं और गईं, लेकिन किसी ने भी शराब बंदी पर ध्यान नहीं दिया। हालांकि संविधान की धारा ४७ में शराब बंदी को अनिवार्य कहा गया है, लेकिन सरकारों की इच्छा शक्ति की कमी के कारण यह संभव नहीं हो पाया। हां लेकिन गुजरात और बिहार राज्यों ने भी एक मिसाल पेश की है जहां संपूर्ण शराब बंदी लागू है। उन्होंने कहा कि अगर शराब की दुकानों को पूर्ण रुप से बंद कर दिया जाए तो इसकी खपत में यकीनन कमी आएगी जिसका उदाहरण हम सभी ने लॉकडाउन में देखा है। लॉकडाउन में जब शराब की दुकानें बंद थीं तो अधिकांश लोगों ने शराब नहीं पी। यह बात अलग है शराब की अंडर कटिंग और कालाबाजारी होती आ रही है, फिर भी अगर सरकारें शराब की दुकानों को पूर्ण रूप से बंद कर दें तो शराब की खपत में कमी जरूर आएगी।
प्रकाशपुन्ज पाण्डेय ने कहा कि शराब, आतंकवाद और नक्सलवाद से भी ज्यादा बड़ी समस्या है। देश की केंद्र और राज्य सरकारों को देश में किसी भी प्रकार के नशे पर संपूर्ण रूप से पाबंदी लगा देनी चाहिए। भले ही इससे आने वाली कमाई की भरपाई कहीं और से करनी पड़े। हालांकि सम्भवतः शुरुआती दौर में इस फैसले का विरोध हो लेकिन राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं से ऊपर उठकर इसे कानून बनाकर देशहित में कड़ाई से लागू करने की अत्यधिक आवश्यकता है क्योंकि भला ये कैसा विकास है कि जनता को नशा परोस कर उससे प्राप्त राशि से जनता की सेवा की जाए? केंद्र और राज्य सरकारों के पास कोरोना काल में देश और प्रदेश में नशाबंदी करने का सबसे सुनहरा अवसर था।
प्रकाशपुन्ज पाण्डेय ने कहा कि जब सरकारी इच्छा शक्ति से नोटबंदी और तालाबंदी हो सकती है तो शराबबंदी और नशाबंदी क्यों नहीं?