October 4, 2023
Uncategorized

दंतेवाड़ा जिले में जैविक खेती करने वाले किसानों के सामने चुनौतिया
जैविक खेती में मेहनत अधिक मुनाफा कम किसान अपनाने को कतरा रहे

Spread the love

जिया न्यूज़:-दंतेवाड़ा,

दंतेवाड़ा:-जिले में परम्परागत कृषि विकास योजना के अधीन जैविक खेती के लिए आर्थिक रूप से व्यवहार बनाने के लिए समूह तथा भागीदारी गारंटी प्रमाणक द्वारा जैविक गांव को अपनाते हुए उन्नत करना है। परंतु दंतेवाड़ा जिले के ग्रामपंचायत बींजाम के किसानों के सामने जैविक खेती करना किसी चुनौती से कम नही है। जैविक खेती में मेहनत अधिक है, और मुनाफा कम मिलने की वजह से किसान इससे अपनाने को कतरा रहे है। वही जिले में गैर सरकारी संस्था भूमगादी का प्रयास भी इस दिशा में रंग नही ला पायी है। ऐसे में सरकार द्वारा जैविक खेती पर जोर दिया जा रहा है। लेकिन यहां के किसानों को यह रास नही आ रहा है। कृषि विभाग भी किसानों को प्रेरित करने में असफल रही है। यही वजह है कि जैविक खेती में किसान नही दिखाते रुचि।

ग्राम बींजाम में जैविक खेती हेतु संस्था द्वारा लगभग 45 किसानों का पंजीयन 1200 रुपये लेकर किया गया है। किसान हरसिंह ओयाम बताते है, की वह पिछले 07 वर्षों से जैविक खेती कर रहे है। जैविक खेती में उत्पादन कम होता है, और मेहनत भी ज़्यादा लगता है। जैविक फसलों का समर्थन मूल्य भी नही मिलता है। जैविक खेती में श्रम ज्यादा करना पड़ता है, जैविक खाद तैयार करना बीज उपचार व जैविक कीटनाशक तैयार करना आदि में अधिक समय खर्च होता है। साथ ही इसमें उत्पादन कम मिलने की आशंका रहती है। जबकि रासायनिक उर्वरकों, खाद ,कीटनाशक, आसानी से उपलब्ध हो जाती है, इस्तेमाल आसानी से हो जाता है। इससे उत्पादन भी अधिक मिलने की उमीद रहती है।

क्या है जैविक खेती
जैविक उर्वरक, कीटनाशक व जैविक विधियों से की जाने वाली खेती जैविक खेती और इससे पैदा होने वाले उत्पाद जैविक उत्पाद कहलाते हैं।

जैविक बाजार का अभाव
किसान हरि सिंह ओयाम बताते है पूर्व कलेक्टर के0सी0 देवसेनापति के कार्यकाल के वक्त जैविक खेती प्रारंभ की थी। हरि सिंह द्वारा अपने खेतों में गोबी,भट्टा, सेमी, जैविक सब्जी की खेती की गई है। इसे बेचने के लिए जिला प्रशासन द्वारा पूर्व में कहा गया था, कि जैविक बाजार बनाया जायेगा। फसलों का उचित मूल्य दिया जाएगा परन्तु कई वर्ष बीत जाने के बाद भी संस्था द्वारा जैविक बाजार बनाने में असफल रही है। मजबूरन किसानों को स्थानीय बाजारों में इसे बेचने को विवश होना पड़ रहा है। जैविक सब्जी का उचित दाम भी उन्हें नही मिलता ना ही भूमगादी संस्था द्वारा कोई मदद की जाती है।

यह हैं फायदे
देश ही नहीं विदेशों में भी जैविक खेती के उत्पादों की मांग बढ़ रही है। ऐसे में इसका एक
अलग ही बाजार तैयार हो रहा है। इन उत्पादों की रासायनिक खाद से पैदा होने वाले उत्पादों की तुलना में कीमत भी अधिक मिलती है।
लेकिन छोटे स्तर पर काम करने वाले किसानों को जैविक उत्पादों के विपणन की समस्या आड़े आती है।

Related posts

बाढ़ पीडितों की सहायता के लिए आगे आए रामू नेताम

jia

जब COVID-19 का खतरा अभी टला नहीं है तो स्कूल खोलने की अनुमति क्यों दी गई है? – प्रकाशपुन्ज पाण्डेय

jia

कोरोना वायरस के संक्रमण को लेकर बेमेतरा कलेक्टर व एसपी ने शासन, प्रशासन के निर्देशों का कडाई से पालन करने की अपील.

jia

Leave a Comment

error: Content is protected !!