बस्तर के जंगलों में छुपा है अमृत जिसके सेवन सेअंचल के निवासी बनते हैं अपने को रोग प्रतिरोधी


रिपोर्टर -बब्बी शर्मा
कोण्डागांव अनादी काल से ऋषि मुनियों द्वारा जंगलों में मिलने वाली जड़ी बूटियों का दोहन कर जन कल्याणयार्थ औषधीय उपयोग किया करते थे शैन्य शैन्य समय के साथ आयुर्वेदिक चिकित्सा से लोगों की दूरी बढ़ती गई व अन्य चिकित्सा पद्धतियों की ओर रुझान बढ़ता ही गया।
बस्तर के वनों में अनेकों दुर्लभ जड़ी-बूटियाँ यत्र-तत्र बिखरी पड़ी हैं जिनका उपयोग स्थानीय आदिवासियों द्वारा सदियों से विभिन्न व्याधियों के निवारण हेतु किया जाता रहा है,कोण्डागांव जिले मे बागबेड़ा निवासी बबलू नेताम आज कल कोडिव-१९(कोरोना) वायरस की विश्व व्यापी त्रादसी के प्रति जागरूक करने के साथ लोगों को जड़ी बूटीयों से बना काढा निःशुल्क वितरित कर रहे हैं।
बबलू नेताम नेJ_I_A Newz को एक भेंट मे बताया कि कई पीढीयों से उनके बाप दादा अपने ज्ञान से लोगों की सेवा करते आ रहे हैं उसी परंपरा को आगे बढाते हुए के अपने बुजुर्गों से जड़ी बूटियों का ज्ञान अर्जित कर अंचल के लोगों की सेवा कर रहे हैं,उन्होंने बताया कि गिलोये,लौंग,काली मिर्च व शनी देव की छाल के साथ कई अन्य जड़ी बूटियों को मिला कर तैयार काढा देता हु जिस से शरीर में खून बनाने की प्रक्रिया तेज होती है साथ ही प्रतिजैविक क्षमता में अत्यंत बढ़ जाती है,शरीर के स्वस्थ्य रहने पर बिमारियों का प्रभाव कम होता है।
आयुष चिकित्सक डॉक्टर चंद्रभान वर्मा के अनुसार आयुर्वेद में अदरक,तुलसी, हल्दी, त्रीकूट व गिलोय आदि के नियमित सेवन से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।कोरोना महामारी को देखते हुए रोग प्रतिरोधी क्षमता बढाने की आवश्यकता भी है।पारंपारिक ज्ञान से ग्रामीण कुछ दुर्लभ वनौषधियों का अच्छी जानकारी रखते है ।