जिया न्यूज:-बब्बी शर्मा-कोण्डागाँव,

कोंडागांव:-पुरात्तविक संम्पदाऔं से पटे हुऐ बस्तर क्षेत्र में आज भी अनेकों स्थान ऐसे हैं जो आम जनों की नजर में नहीं आऐ हैं,ऐसी ही एक जगह है महादेव डोंगरी।
छत्तीसगढ़ के कोण्डागाँव जिले के फरसगाँव विकास खण्ड में राष्ट्रीय राजमार्ग 30 पर पश्चिम दिशा की ओर
बड़े डोगंर ग्राम से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित है यह शिव धाम अंचल में प्रचलित जनश्रुतियों के अनुसार महादेव डोंगरी ऋषि मुनियों की तपोभूमि थी।
भोलेनाथ कैलाश पर्वतवासी है . ठीक वैसे ही महादेव डोंगरी पहाड़ी के शीर्ष पर भी एक शिव लिंग है जिसके दर्शन के लिए कोई रास्ता नहीं है। कुछ समय पहले झाड़ियों को हाथों से हटाते हुए पहाड़ी पर चढ़ना पड़ता था अब शिवलिंग तक पहुँचने के लिए स्थानीय ग्रामीणों एवं पुजारियों ने झाड़ियों को काट कर रास्ता बनाने का प्रयास किया है .फिर भी पहाड़ पर चढ़ना एक टेड़ी खीर है। निःशक्त जनों के लिए चाह कर भी यहाँ तक नहीं पहुंच पाना असंभव हैं ।
पत्थरीली पकड़ंडी के सहारे पहाड़ की चढ़ाई करते हुए उपर पहुचने पर चट्टान पर एक प्राकृतिक जल कुण्ड है । पत्थर में होने के बावजूद प्राकृतिक वाष्पीकरण से इस जल कुण्ड के पानी का न सूखना अपने आप में आश्चर्यजनक है ,मई–जून के महीने में भी इस जल कुण्ड में पानी भरा रहता है । जबकि पहाड़ी के नीचे गांव के तालाब गर्मियों के दिनों में सूख जाते हैं । इतिहासकार घनश्याम सिंह ने बताया की देवों के देव महादेव इस पहाड़ी पर विचरण करते हैं । एक बार भगवान महादेव किसी बात से नाराज हो गये थे । क्रोध में आकर उन्होंने डमरू को जोर से पत्थर पर दे मारा, जिससे पत्थर पर गड्ढा बन गया । शिव जी के डमरू पटकने से निर्मित होने के कारण यह गड्ढा अक्षय जल कुण्ड में परिवर्तित हो गया ।
शिवलिंग पहाड़ी के शीर्ष पर एक परतदार चट्टान के मध्य गुफानुमा स्थान में बना हुआ है। यह आकार में बहुत छोटा है | शिवलिंग के पास ही नंदी की आकर्षक पत्थर की प्रतिमा है । गुफा आसपास पत्थरो में अजीब सी आकृति बनी हुई है तो किसी शिला पर लोगो के नाम खुदे हुए है कुछ वर्षों से श्रावण मास के प्रत्येक सोमवार और शिवरात्रि के दिन यहाँ पूजा–अर्चना होने लगी है।
जिसे देखते हुए टीन की चादर से सुरक्षा घेरा बनाया गया है |
इतिहास के जानकार घनश्याम सिंह ने बताया की इस शिवलिंग और नंदी की स्थापना कब और किसने की इसकी जानकारी किसी को नहीं है । नन्दी को तराश कर स्थापित किया गया है, इसलिए अनुमान यह भी लगाया जा सकता है कि शिवलिंग स्वयंभू नहीं होगा बल्कि पत्थर को तराश कर शिवलिंग की आकृति दी गई होगी ।