जिया न्यूज़:-जगदलपुर,
लोहण्डीगुड़ा 31मार्च 1961 गोली काण्ड में शहीद 12आदिवासीयों की चिन्हित शहीद स्मारक पर स्थानीय जनप्रतिनिधियों का नहीं पहुंचना बड़ा गंभीर, आदिवासीयों का याद सिर्फ चुनाव समय ही आता है–भरत कश्यप
जगदलपुर:- सर्व आदिवासी समाज युवा प्रभाग जिला उपाध्यक्ष भरत कश्यप ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा कि लोहंडीगुड़ा गोलीकांड के शहादत दिवस के अवसर पर बस्तर के स्थानीय जनप्रतिनिधि कोई भी नहीं पहुंचे यह बड़ी दुःख की बात है,नहीं राज परिवार के सदस्य शहादत स्थल पर पहुंच कर नमन किया गया नहीं किसी प्रेस मीडिया या फेसबुक या व्हाट्सएप के माध्यम से श्रद्धांजलि अर्पित किया गया है यह बस्तर वासियों के लिए बहुत बड़ी दु:ख की बात है आज हमारे आदिवासी समाज के बने वर्तमान सांसद, विधायक, मंत्री व पुर्व सांसद, विधायक आदिवासी भावनाओं को ना समझते हुए 31मार्च शहीद के अवसर पर यहां आना जरूरी नहीं समझा जबकि सांसद व विधायक हैं जो आदिवासी वोट हासिल करके लोकसभा व विधानसभा तक पहुंचते हैं। सत्ता की नशा में चूर, जनप्रतिनिधियों को समझना चाहिए आदिवासियों भावनाओं को ठेस पहुंचाकर किस मुंह से फिर अगले चुनाव में आदिवासी से वोट मांगने आयेंगे? जनता ने अपने सच्चे हितेषी नेताओं का पहचान करना शुरू कर दिया है। जनप्रतिनिधियों हमारे आदिवासी समाज को भूल रहे हैं ज्ञात होगा कि लोहंडीगुड़ा गोलीकांड में लगभग हजारों आदिवासियों की गोली मारकर हत्या हुई थी लेकिन बस्तर के जनप्रतिनिधियों के जूं तक नहीं रेंग रही है। दिखावा का राजनीतिक कब तक चलेगा? यह बड़ी दुख की बात है कि हां कि स्थानीय जनप्रतिनिधियों लोहंडीगुड़ा में शहीद परिवार के प्रति घृणा भाव करती है चाहे वह पूर्वर्ती बीजेपी सरकार हो चाहे कांग्रेस सरकार हो या तमाम प्रकार के संगठन हो आदिवासियों के प्रति नफरत की राजनीति करती है। अगर नफरत की राजनीति करती है,अगर नहीं करते हैं तो आज इतने आदिवासी शहीद हुए हैं उनको श्रद्धांजलि अर्पित करना चाहिए था लेकिन आज कांग्रेस बीजेपी या तमाम प्रकार के संगठन आज आदिवासी समाज के उरदा ऊर्जावान शहीद वीरों को नमन तक नहीं किया यह बेहद बड़ी दुःख की बात है। यह घटना के 60 वर्ष पुरे हो जाने के बाद भी आदिवासी समाज द्वारा शहीद स्मारक की मांग को अब तक पूरा नहीं कर सका है,जबकि कांग्रेस व भाजपा दोनों ने लंबे समय तक सत्ता का सुख भोगा है दोनों ही पार्टियों को जवाब देना चाहिए कि 31 मार्च 1961 में शहीद हुए आदिवासीयों को शहीद का दर्जा देने में उतना क्यों घबरा रही है। इस बात को सर्व आदिवासी समाज समझ रहा हैं स्थानीय जनप्रतिनिधियों का समाज के प्रति किया सोच है जल्द ही उचित समय पर उगाकर कर इनको बेनकाब किया जायेगा